Thursday 16 February 2012

Parashar Tirth


कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल अपना पौराणिक् महत्व रखने के साथ-साथ अपना ऎतिहासिक ओर सामाजिक महत्व रखता है. यहां के सरोवर में स्नान करने का पुन्य काशी और संगम में स्नान करने के समान कहा गया है. इस स्थान की मह्त्वता इसी बात से लगाई जा सकती है, कि मुगलों के महान राजा अकबर ने भी यहां आकर स्नान किया था. कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल पर सूर्यग्रहण हों, या चन्द्रग्रहण हों श्रद्वालु लाखों की संख्या में होते है. अमावस्या और संक्रान्ति के पुन्य काल में भी इस स्थान पर डूबकी लगाने वाले भक्तों कि कमी नहीं होती है.

इस तीर्थ स्थल पर स्नान के शुभ समय में देश-विदेश और आस-पास के राज्यों से लोग स्नान का पुन्य प्राप्त करने के लिये आते है. यहां का पअनी भांखडा नहर और मानसरोवर झील से आता है. शास्त्रों के अनुसार मानसरोवर झील को भगवान शिव का स्थान माना गया है. इसी कारण इस झील से आने वाले जल से स्नान करने की महत्वता बढ गई है. कुरुक्षेत्रो के सरोवरों में स्नान करने के बाद सूर्य वस्तुओं का दान करने से हजारों अश्वमेघ यज्ञों के समान लाभ प्राप्त होता है.

कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल की मान्यताएं | Kurukshetra Tirth Beliefs
कुरुक्षेत्र को महाभारत के समय में हुए, युद्ध के युद्धक्षेत्र के रुप में जाना जाता है. पर समय के साथ इस क्षेत्र का महत्व बदल गया है. कुरुक्षेत्र आज एक प्रसिद्ध और अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति प्राप्त तीर्थ स्थल हो गया है. यहां के विषय में मान्यता है, कि सूर्यग्रहण या ग्रहण समय में यहां एक ब्रह्रा सरोवर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में काशी में स्नान करने का सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है. और सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में स्नान करना सबसे उतम फल देता है. इस तीर्थ स्थल का वर्णन श्रीमद भागवत गीता में भी किया गया है.

यही कारण है, की सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र का धार्मिक दृष्टि से महत्व बढ जाता है. कुरुक्षेत्र स्थल में स्नान कर्रने की महत्वता आप विश्व प्रसिद्ध है. यहां का इतिहास स्मरणिय और गौरवशाली रहा है. इस क्षेत्र से कई पौराणिक कथाएं जुडी हुई है. इस तीर्थ स्थल को तीन देवों की स्थली के रुप में भी जाना जाता है. इसीलिए इस स्थान का नाम ब्रह्मा सरोवर है. इस सरोवर का वर्णन पुराणों और महाभारत काल में भी मिलता है.

कुरुक्षेत्र का एक अन्य तीर्थ स्थल फल्गु | Falgu : Pilgrimage of Kurukshetra
ब्रह्मा सरोवर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर ही एक फल्गु नामक तीर्थ स्थल है. इस तीर्थ स्थल का वर्णन भी महाभारत काल में युद्धिष्ठर से जुडा हुआ माना जाता है. इस स्थान पर आश्चिन मास की सोमवती अमावस्या के दिन पुर्वजों की शांति के लिये पींडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. सोमवती अमावस्या से अभिप्राय ऎसी अमावस्या से है, जिस अमावस्या तिथि के दिन सोमवार पडता हों. वह अमावस्या विशेष रुप से शुभ मानी जाती है. इस अवधि में किसी भी तीर्थ स्थल पर स्नान करने का महत्व बढ जाता है.

शास्त्र पुराणों में भी कहा गया है, कि अमावस्या तिथि में पितर कार्य करना कल्याणकारी रहता है. अमावस्या तिथि और सोमवार के दिन जो व्यक्ति श्राद्व करता है, उसके पितरों की तृप्ति होती है.

फल्गु तीर्थ स्थल से जुडी पौराणिक कथा | Falgun Tirth Katha in Hindi
बात उस समय् की है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था. क्रुरुक्षेत्र में लाखों सैनिकों के शव भरे पडे थें. जिनमें कुछ मात्र सैनिक थें, और कुछ कौरवों या फिर पांडवो के रिश्तेदार थे. अपने सैंकडों रिश्तेदारों कि मृ्त्यु से दु;खी होकर, राजा युधिष्ठर ने अपनी पीडा का वर्णन भगवान श्री कृ्ष्ण से किया. भगवान श्री कृ्ष्ण ने इसका जवाब जानने के लिये युधिष्ठर को पितामह के पास जाने की सलाह दी. श्री कृ्ष्ण कि बात मानकर वे अपना प्रश्न लेकर पितामह के पास गए. और उन्होंने इस दु:ख से बाहर आने का मार्ग बताने का आग्रह किया. इस पर पितामह भीष्ण ने फल्गु तीर्थ स्थल पर सोमवती अमावस्या अवधि में जो पिंडदान करेगा. उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

इस धर्म स्थल को लेकर एक अन्य पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है, गया राज्य पर गयासुर नामक राक्षस का राज था. उस राक्षस की तीन सुंदर पुत्रियां दी. जब ये पुत्रियां विवाह योग्य हुई तो, राक्षस ने यह शर्त रखी की, जो भी उसे युद्ध में हरायेगा. उसी से वह अपनी बडी बेटी का विवाह कर देगा. तथा उससे छोटी दोनों बहनों को वह विवाह में दहेज स्वरुप दे देगा.

गयासुर की यह घोषणा सुनकर फल्गु नामक ऋषि राजा के दरबार में पहुंचें. और ऋषि ने राजा को युद्ध में हरा दिया. इस पर गयासुर ऋषि से इतना प्रसन्न हुआ कि उसने अपने पुत्रियों का विवाह करने के साथ साथ पिंड तर्पण का ज्ञान भी ऋषि को दे दिया. और उसने ऋषि को यह वरदान दिया कि जो जन आश्चिन मास की सोमवती अमावस्या को इस स्थान पर पिंडदान करेगा. उसे पितृऋण से मुक्ति मिलेगी.

कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल की अन्य विशेषताएं | Kurukshetra Pilgrimage Importance
कुरुक्षेत्र तीर्थ स्थल के मह्त्व का वर्णन जितना किया जायें, वह कम है. एक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर ब्रह्मा देव ने सृ्ष्टि कि रचना का यज्ञ किया था. महर्षि ने इसी स्थान पर राजा इन्द्र को देवों की रक्षा के लिये अपनी अस्थियों का दान दिया था. इस तीर्थ स्थल पर प्रयास आदि सभी मुख्य तीर्थ स्थल समाहित हो जाते है. इसलिये इस तीर्थ स्थल को महापुण्यवाली स्थली के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है.

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